चंडीगढ़ प्रेस कल्ब में तीन दिवसीय जर्निलिस्ट लिटरेचर फेस्टिवल शुरु
पहले दिन आयोजित हुये सत्र, पत्रकारों की रचनाएं हुई प्रदर्शित, कवि सम्मेलन ने किया मंत्रमुग्ध
चंडीगढ़: अपनी मांगो को लेकर किसानों का आंदोलन न्यायहित में है और वह कृषि समाज का मूल अधिकार है। । यह मत शुक्रवार को सेक्टर 27 स्थित चंडीगढ़ प्रैस कल्ब में आयोजित पहली बार तीन दिवसीय जर्निलिस्ट लिटरेचर फेस्ट के पहले सत्र के दौरान उभर कर आया । इस आयोजन में समायिक और पत्रकारिता विषय पर देश भर से पत्रकार, क्लब सदस्यों के साथ विचारों का आदान प्रदान कर रहे हैं। अनवेलिंग वैलर: स्टोरीज ऑफ इंडियन मिलिट्री ब्रेवरी नामक पहले सत्र के दौरान पंजाब में किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में ‘जय जवान जय किसान’ के विरोधाभास के संदर्भ में बाप अपने एक बेटे को सीमा पर और दूसरे को खेतों में भेजता है जो पैनल में शामिल ऐश्वर्या खोसला, शिव अरूर और चंद्रसूता डोगरा का मत था कि इन व्यक्तियों की अपनी अपनी कर्मभूमि है। चर्चा के दौरान इस बात पर बल दिया कि सेना गैर राजनीतिक और धर्मनिरपेक्ष होने के चलते अप्रभावित है।
दिल्ली स्थित सीनियर वार जर्नलिस्ट शिव अरुर ने अपने संबोधन में बताया कि इंडियन आर्मी मात्र एक आर्मी नहीं बल्कि ‘मोरल’ आर्मी है। जिसके योगदान के लिये समाज और अन्य देश तक श्रृणि है। कश्मीर बॉर्डर में आतंकवाद को खत्म करने से लेकर सिंघु बार्डर आंदोलन को नियंत्रित कर न्याय व सुरक्षा स्थापित करने तक आर्मी की अहम भूमिका रही है। यूएन पीसकीपिंग फोर्स के माध्यम से विश्व भारतीय सेना का सदैव आभारी रहेगा। चंद्रसूता डोगरा ने भी अपने अस्सी के दशक में कश्मीर में रिपोर्टिंग का उल्लेख करते पेश आ रही चुनौतियों से अवगत करवाया। उनके अनुसार किसी भी पत्रकार को लैंगिकता के आधार पर कम नहीं समझना चाहिये।
फेस्ट के दूसरे सत्र में सूचना के प्रसार में ट्रांसलेशन (अनुवाद) के महत्व नामक विषय पर माडरेटर वरिष्ठ पत्रकार शायदा बानू का मत था कि मौजूदा दौर में बाहरी दुनिया की समझ के लिये बहुभाषी होना आवश्यक है। पत्रकारिता और लेखन के विस्तार में अनुवाद ने एक अहम भूमिका निभाई है जिसके चलते लोगों की वैश्विक समझ का दायरा बढ़ा है। सत्र में मौजूद पंजाबी की वरिष्ठ पत्रकार और ‘आउट ऑफ दी ऐशिज’ की पंजाबी अनुवादक दवी दविंदर कौर ने अपने संबोधन में बताया कि लैंग्वेज जर्नलिज्म मात्र रिर्पोटिंग को दर्शाता परन्तु जब उसी रिपोर्ट के अनुवाद स्थानीय भाषाओं में आकार लेता है तो वह एक ओपिनियन (आम राय) कायम करती है। सत्र में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार चेतन ठाकुर के अनुसार एक अनुवादक भाषा में निखार लाता है। कई बार एक लेखक की असल कृति में ऐसा डूब जाता है कि वे लेखक से भी बेहतर कहानी में उतर जाता है। चर्चा में शामिल पैनलिस्टों के अनुसार पाठक हित में शब्दों से ‘खेले’ परन्तु ’खिलवाड़’ न करेें। अनुवादक मूल भावना की हत्या न करे वर्ना ‘अर्थ से अनर्थ’ हो जायेगा।
दिन के तीसरे सत्र में हिंदी, पंजाबी और उर्दू की पत्रकारिता और साहित्य में भूमिका पर वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार डा चन्द्रत्रिखा, वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन गुप्ता मोनी तथा पत्रकारिता के साथ साथ हिन्दी और उर्दू साहित्य में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किये। डा चन्द्रत्रिखा ने कहा कि हिन्दी उर्दू और पंजाबी को अलग अलग करके नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने इन तीनों भाषाओं के वरिष्ठ साहित्यकारों और पत्रकारों के योगदान पर प्रकाश डाला।
इसके पश्चात कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया जिसमे साथी पत्रकारों ने अपने काव्य रचनाएं दर्शकों के सम्मुख रखी।
कार्यक्रम के दौरान एक रक्तदान शिविर भी आयोजित किया जिसमें 20 क्लब सदस्यों ने रक्तदान किया और उन्हें पीजीआई के ब्लड बैंक द्वारा सम्मानित भी किया गया। फेस्ट में पत्रकारों की रचनाओं को भी प्रदर्शित किया गया है।