Chandigarh : इस्लामी सल्तनत ने यहूदियों को पनाह दी। यहूदियों का मुसलमानों के साथ कोई झगड़ा नहीं था। दोनों एक-दूसरे के करीबी थे। अब दोनों की लड़ाई कब प्रारंभ हुई? इस मसले को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। आर्य इसे समझने किनेक कोशिश करते है।
रोमन साम्राज्य का पतन हो गया था। उस पतन में उस्मानिया सल्तनत की भी बड़ी भूमिका मानी जाती है। रोमन साम्राज्य के स्थान पर यूरोप में कई शक्तियां खड़ी हुई। उसमें फ्रांस के नेपोनियन बोनापार्ट सबसे शक्तिशाली बनकर सामने आए और उन्होंने मिस्र पर आक्रमण कर पहली बार मुसलमानों को हरा इतिहास की धारा मोड़ दी। बोनापार्ट इंग्लैंड से हार गए। बोनापार्ट को सिकस्थ देने के बाद इंग्लैंड बड़ी शक्ति के रूप में उभरा और लगभग 200 वर्षों तक दुनिया के बड़े भूभाग पर शासन किया।
इस दौर में उस्मानिया सल्तनत भी कायम रहा। फिरंगी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि उन्हें आने वाले समय में उस्मानिया सल्तनत और मुसलमानों से खतरा हो सकता है। इसलिए फिरंगियों ने मुस्लिम दुनिया को तीन भागों में विभाजित कर दिया। पहला तुर्की की खिलाफत समाप्त कर वहां अतातुर्क मुस्तफा को सत्ता सौंपा। दूसरा, सउदी अरब को अलग देश बनाया और वहां वहाबी इस्लाम की नींव डाली। तीसरा, अरब की धरती पर यहूदियों को लाकर बसा दिया। सच पूछिए तो यहूदी और मुसमान एतिहासिक रूप से एक-दूसरे के साथ रहे हैं। यहूदियों की असली लड़ाई तो यूरोपियों या ईसाइयों के साथ रही है।
अंग्रेजों ने अपनी लड़ाई को ढंकने और अरब पर नियंत्रण के लिए यहूदियों को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा किया है। फिलहाल यहूदी मुसलमानों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। अब इंग्लैंड चित्र से नेपथ्य में है। लेकिन दुनिया में दो प्रभावशाली देश अमेरिका और रूस, अपनी साम्राज्यवादी मनोवृत्ति के कारण पश्चिम एशिया को बूचड़खाना बनाए हुए है।
इजरायल को अपनी धरती प्राप्त हो चुकी है। उसे अरब का नेतृत्व करना चाहिए और वहां शांति स्थापना का प्रयास करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर, सऊदी अरब, तुर्कीय और ईरान को भी वर्तमान सत्य, इजरायल को मान लेना चाहिए। ऐसा जब तक नहीं होगा तब तक पश्चिम एशिया इसी तरह युद्ध की विभीषिका झलता रहेगा और आम व निर्दोष लोग मारे जाते रहेंगे।