10 गुणा से अधिक बजट बढ़ाने पर भी गोशालाओं को जारी नहीं कर रहे राशि
पहले भी गौशालाओं में खड़ा होता रहा चारा संकट, फिर भी सुस्त गठबंधन सरकार
चंडीगढ़ : अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री, कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य एवं हरियाणा कांगे्रस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा कि गायों के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने बजट में गायों के लिए 10 गुणा से अधिक राशि बढ़ाने का ऐलान कर वाहवाही लूटने की कोशिश की, पर हकीकत तो यह है कि आज भी गोशालाओं में चारे के लिए संकट बना हुआ है। गौशालाओं को अनुदान जारी नहीं किया जा रहा। चारे के अभाव में गायें भूखी रहती हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत नूंह, फतेहाबाद, हिसार व सिरसा की गोशालाओं के सामने आ रही है। बावजूद इसके ये सरकार स्वयं को गोभक्त कहती है।
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि गठबंधन सरकार गायों के नाम का प्रयोग सिर्फ अपने फायदे के लिए करना जानती है। बाकी गौ सेवा से उसका कोई भी लेना-देना नहीं है। गौ सेवा आयोग का इस बार बजट बढ़ाकर 456 करोड़ रुपये कर दिया गया, जो पिछले साल 40 करोड़ रुपये था। लेकिन, प्रदेश सरकार यह बात किसी को नहीं बताती कि पिछले साल के बजट में से सिर्फ 33 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए थे और बाकी 07 करोड़ रुपये ग्रांट लैप्स हो गई थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह कितने शर्म की बात है कि अभी तक प्रदेश की गौशालाओं में चारे पर खर्च होने वाली राशि में सरकार ने एक पैसे की भी बढ़ोतरी नहीं की है। जो राशि चारे पर खर्च करने के लिए प्रति गाय स्वीकृत है, उससे एक गाय का पेट भरना मुश्किल है क्योंकि, तूड़ी, हरा चारा के दाम काफी बढ़ चुके है।
कुमारी सैलजा ने कहा कि दिसंबर 2022 में नारनौल नगर परिषद की ओर से संचालित गांव रघुनाथपुरा की पहाड़ी की तलहटी में मौजूद गौशाला में चारा खत्म होने की घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया था। गौशाला में सफाई न होने, स्टाफ को महीनों से वेतन न मिलने का बड़ा मुद्दा बन गया था। जींद के जयंती देवी मंदिर के सामने बनी अस्थाई नंदीशाला को करीब 02 साल से ग्रांट न मिलने का मामला भी जमकर सुर्खियां बना था। इससे पता चलता है कि प्रदेश सरकार गोवंश के कल्याण के लिए गंभीर नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि लंपी बीमारी के दौरान भी प्रदेश के लोग गठबंधन सरकार के गायों के प्रति कथित प्रेम को देख चुके हैं, जब दवा तक उपलब्ध नहीं कराई गई और हजारों गायों को अपनी जान गंवानी पड़ी। गायों के चारे के लिए गौशालाओं को अनुदान न दिए जाने से गोवंश के सामने भूखे मरने की नौबत आ सकती है।